सुबह का सपना
सुबह अँधेरे सपना आया ,
चंदा मेरे घर पर आया ,
उसने मेरा द्वार खटकाया ,
खोला तो वो मुस्काया ,
अंदर मैंने उसे बुलाया ,
हँसते -हँसते वो अंदर आया ,
सोफे पर उसको मैंने बिठाया |
पानी लाई जब दोस्तों ,
वो हँस दिया खाली पानी ,लाओ शिकंजवी ,
तब मैंने शिकंजवी का गिलास थमाया ,
पी लूँगा तुम अंदर जाओ ,
कड़क चाय बना कर लाओ |
चाय चढ़ा दी जब मैंने तो ,
अंदर से आवाज़ ये आई ,
फिंगर -चिप्स बना दो भाई ,
ये सुनकर मैं भी मुस्काई ,
मैंने तेल की कड़ाही ,गैस पर चढ़ाई |
बना चाय और फिंगर -चिप्स ,
मैं लेकर जब अंदर आई ,
चंदा मुस्का कर बोला ,
तू तो बड़ी कमेरी भाई ,
मैंने मुस्का कर चाय का कप ,
अपने होठों तक बढ़ाया ,
तभी आई आवाज़ ,
मम्मी ! बेटा मेरा गया था जाग ,
नींद खुली तब मेरी ,
तो सपना भी टूट गया था ,
आँखें खोल कर मैं मुस्काई ,
खिड़की से बाहर चाँद मुस्का रहा था |
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