बंद ज़ुबां
पहली मुलाकात थी वो ,या थी पहेली ,
वो आँखों का मिलना ,पलकों का झुकना ,
क्यों हमारी जुबां ,बंद हो गई थी ,
भाव जग गए थे और ,शब्द सो गए थे ,
ये सब क्या हुआ था ? बता तो -ए -सहेली|
वो बादलों की छाँव ,ठंडी हवा के झोंके ,
सब कुछ तो साथ में था ,पर हम कहाँ पे खोए ?
फूलों की खुश्बुएँ भी ,हमको नहीं हैं आतीं ,
ये किसका असर हम पर ?बता तो -ए -सहेली |
चल छोड़ सब सहेली ,बूझ ये पहेली ,
दिल मेरा तो खो गया है ,किसी और का हो गया है ,
क्या वापस मिलेगा मुझको ?या हो रहेगा उसका ,
क्या एक मुलाकात में ,बेदिल मैं हो चुकी हूँ ?
शर्म -ओ -हया का आँचल ,मैं ओढ़ चुकी हूँ |
No comments:
Post a Comment