पहाड़ों का खज़ाना
सूर्य रश्मियाँ बिखर गईं ,पहाड़ों की चोटी पर ,
बहती हुईं नदियाँ जैसे ,नीचे को उतर गईं ,
आँखों से दिल में उतर गया ,दृश्य वो पहाड़ों का ,
लगा ऐसा हमको ,पहाड़ों को सोना कर गईं |
पहाड़ों पे फैले जंगल ,हरियाली फैली हुई है ,
शुद्ध हवा का मानो ,गोदाम बन गई है ,
साँसें हमारी जैसे ,उन पर ही निर्भर हैं ,
जिंदगी पे ये हरियाली ,एक क़र्ज़ बन गई है |
झर -झर झरते हैं झरने ,पहाड़ों के सीने से ,
शुद्ध ,शीतल जल हमें ,मिलता है इन्हीं से ,
ऐसा शुद्ध जल हमें ,और कहाँ मिलेगा ?
क्या खूब है प्रकृति ,रची है रचेता ने ?
ये सब खज़ाना है छिपा ,पहाड़ों के सीने में ,
जो धीरे -धीरे देता ,झोली हमारी भरता ,
जिंदगी हमारी ,निर्भर इन्हीं पर करती ,
बिन मोल ये खज़ाना ,हमको है देती रहती |
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