आग का देवता
ये कहानी आदि मानव की ,
गुफा में जब वह रहता था ,
कैसे बचें खूंखार पशु से ?
ये सब नहीं जानता था ,
तभी अचानक कहीं जंगल में ,
आग लगी भई आग लगी ,
दूर आग से पशु सभी भागे ,
मानव बुद्धि जाग पड़ी |
समझ में मानव की आया ,
आग से डरते सभी पशु ,
आग इकट्ठी कर मानव ने ,
पशुओं को दूर भगाया ,
सूखी पत्तियों ,लकड़ी से ,
उसने आग को भड़काया ,
ऐसे ही अचानक मानव ने ,
नई आग को जलाया |
संगी -साथी बनी आग फिर ,
मानव ने आग के आगे शीश झुकाया ,
धीरे -धीरे मानव ने फिर ,
पका के खाना खाया ,
अब तो मानव ने आग को ,
ईश्वर अपना बनाया ,
अलग -अलग विधि से मानव ने ,
पूजा - पाठ कराया |
मंत्र ,प्रार्थना धीरे -धीरे उपजे ,
हवन ,पाठ भी जाग गए ,
मंदिर बने तो मानव ने उसमें ,
दीपक खूब जलाए ,
कभी हुआ नुकसान आग से ,
मानव ने ये सोचा ,
कुछ गलती हुई है उससे ,
तभी तो अग्निदेव क्रोधित हुए |
आज भी जारी अग्निदेव की ,
पूजा ,अर्चना ,मंत्र ,
आगे भी ऐसा ही होगा ,
जब तक शुद्ध न होगा तंत्र |
No comments:
Post a Comment