एक मेला
संसार है एक मेला , यहाँ उम्र गुजारी है ,
ऊपर वाले की , हम पर ये उधारी है |
अपने कर्मों से ही , ये क़र्ज़ चुकाना है ,
अच्छे कर्मों का ही , लेखा लिख जाना है |
संसार है एक सागर ,हमें तैर के जाना है ,
कहाँ पहुंचेंगे हम फिर , ये उसने जाना है |
परमात्मा ही तो जाने , क्या आगे होना है ,
हम तो उसके बच्चे , उसका ही खिलौना हैं |
सुख उसने हमें बख्शे , दुःख भी हैं हमको दिए ,
इन सबके साथ ही उसने , प्यारे परिवार दिए |
अब आगे तो मित्रों , हमें आभार चुकाना है ,
अच्छे कर्मों का ही , लेखा लिख जाना है |
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