तितली
बन के तितली ,दिल मेरा उड़ा ,
उड़ के वो पहुँचा ,फूलों के गाँव में ,
बादलों की छाँव में ,नदिया की नाव में |
फूल खिले थे रंग -बिरंगे,दिल मेरा पहुँचा वहाँ ,
बच्चों की एक टोली भी ,आ पहुँची खेलने वहाँ ,
देखी रंग -बिरंगी तितली ,बच्चे उसे पकड़ने दौड़े ,
जब वो तितली हाथ ना आई ,बच्चे हुए उदास |
उड़ के वो तितली पहुँची ,एक बच्चे के हाथ पे ,
वो मुस्काया तो ,दूसरों ने भी अपना हाथ फैलाया ,
उड़ -उड़ कर के तितली ,बारी -बारी बैठी सबके हाथ पर ,
सभी खिलखिलाए , नहीं रहा कोई उदास |
बादलों की छाँव में ,दिल मेरा पहुँचा तो ,
रंग -बिरंगी देख के तितली ,दामिनी चमकी ,
कड़क दामिनी की सुनकर ,तितली तो घबरा गई ,
छिपने का स्थान ढूँढ़ते देख ,बादल समझ गए ,
दामिनी को रोका ,पवन संग की अठखेलि ,
नन्हीं तितली समझ गई ,बदरा ,दामिनी संग खेली |
नदिया में तैरती नाव में ,अब तितली आई ,
नाव तो तैर रही थी , तितली उड़ -उड़ कर आई ,
नाव में बैठा प्रेमी जोड़ा ,उनको तितली भायी ,
अपनी बातें भूलकर,तितली संग खेले दोनों ,
तितली को तो बड़ा मज़ा ,आया इन सब खेलों में ,
मेरा दिल भी खुशी से ,फूला नहीं समाया |
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