पहाड़ों में कैद एक रूह
आजकल बरसात में ,बातों ही बात में ,
खिड़की से झाँका हमने,पहाड़ों को देखा,
सागर का पानी भी था ,पीछे थे पहाड़,
पेड़ों की चादर ओढ़े ,खड़े थे पहाड़ |
कभी बदरा की छाया थी,कभी होती धूप,
कभी छाया चलती जाती,बदरा के उड़ने से,
धूप तो बनती जाती ,पहाड़ों को हरा -भरा |
मेरा दिल,मेरी रूह, पहाड़ों में जा बसे ,
कैद थे दोनों के दोनों ,उन्हीं के बीच में ,
दोनों उन्हीं पहाड़ों के ,सौंदर्य में खो गए ,
लौट आने का उनका,रास्ता भी खो गया,
कैद हैं दोनों वहाँ पर ,कोई कष्ट करेगा क्या ?
वहाँ रास्ता ढूँढ कर ,लौटा के लाएगा क्या ?
आजकल बरसात में ,बातों ही बात में ,
खिड़की से झाँका हमने,पहाड़ों को देखा,
सागर का पानी भी था ,पीछे थे पहाड़,
पेड़ों की चादर ओढ़े ,खड़े थे पहाड़ |
कभी बदरा की छाया थी,कभी होती धूप,
कभी छाया चलती जाती,बदरा के उड़ने से,
धूप तो बनती जाती ,पहाड़ों को हरा -भरा |
मेरा दिल,मेरी रूह, पहाड़ों में जा बसे ,
कैद थे दोनों के दोनों ,उन्हीं के बीच में ,
दोनों उन्हीं पहाड़ों के ,सौंदर्य में खो गए ,
लौट आने का उनका,रास्ता भी खो गया,
कैद हैं दोनों वहाँ पर ,कोई कष्ट करेगा क्या ?
वहाँ रास्ता ढूँढ कर ,लौटा के लाएगा क्या ?
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