प्रेम कहानी
सखि एक प्यारी ,सब की थी दुलारी ,
स्कूल जब छूटा ,कॉलेज से नाता जुड़ा था ,
मस्ती भरे थे दिन,मन मयूर नाचे तिनक दिन,
वो उम्र ऐसी थी,सब कुछ सुंदर लगता था|
एक दिन वह बोली ,एक लड़का मेरे पीछे ,
रोज घर से कॉलेज और कॉलेज से घर आता है,
बोलता कुछ नहीं बस देखता जाता है |
हम भी हँस दिए दोस्तों ,कहा उससे ,
मत डर सखि ये तो तेरा बॉडीगार्ड है ,
किसी तरह की समस्या नहीं आएगी ,
आएगी तो डर कर भाग जाएगी |
ऐसे ही दिन बीतते रहे ,साथ चलता रहा ,
सभी कुछ यूँ ही पलता रहा ,
मुस्कानों,खिलखिलाहटों का दौर चलता रहा |
एक दिन वह सखि मेरे घर आई ,
नई बात उसने सुनाई,उस लड़के ने कहा है,
उसे प्रेम है सखि से ,वह जान दे देगा ,
यदि वह सखि हाँ नहीं कहेगी तो |
मैंने कहा जान कोई नहीं देता डर मत ,
वह बोली यदि सच हुआ तो ,
मैंने कहा -तो तू हाँ कर दे ,
लड़का तुझसे सुंदर है ,पढ़ा -लिखा है ,
जाति भी तुम्हारी है ,प्रेम भी करता है ,
व्यापार भी करता है ,क्या परेशानी है ,
सखि उलझन में थी,माता-पिता का डर था|
खैर दोस्तों ,कुछ दिन बाद ,
सखि की कजिन की शादी थी ,
सखि के जीजाजी से उसने दोस्ती बढ़ाई ,
उन्हें सारी बात समझाई ,जीजाजी ने ,
घरवालों को बताया ,सारा माजरा समझाया |
माता -पिता खुश हुए ,और कुछ महीनों बाद ,
सखि दुल्हन बनी डोली थी सजी ,
सपनों जैसा संसार सजा ,जिंदगी आगे बढ़ी ,
एक प्रेम -कहानी शादी में तब्दील हुई ,
जिंदगी भी मानो चलने की जगह उड़ती गई |